क्या आपको कई बार बेहद उदासी महसूस होती है ? कोई काम करने का मन नही होता है ? नींद या तो बहोत ज्यादा आती है या कम आती है ? आपने घी, तेल, मीठा खाना छोड़ दिया है फिर भी आप मोटी हो रही है क्या आपको अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी है ? अगर हां तो हार्मोन्स का असंतुलन इसका कारण हो सकता है।
हार्मोन्स या अंत:स्त्राव शरीर में तैयार होनेवाला एक जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो की रक्त के माध्यम से शरीर में एक स्थान से दूसरे भाग में लाया जाता है। शरीर की विभिन्न रासायनिक क्रियाओं, बुद्धि, विकास, प्रजनन इत्यादि का संचालन, नियमन तथा नियंत्रण हार्मोन्स द्वारा होता है। इनकी सूक्ष्म मात्रा भी प्रभावशाली होती है। हार्मोन्स की कमी/ अधिकता दोनों ही शरीर के लिए नुकसान करते है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हार्मोन्स के बदलाव ज्यादा देखने को मिलता है। महिलाओं में कुछ हार्मोन्स ऐसे होते है जिन्हें फीमेल हार्मोन्स कह सकते है जिससे ना सिर्फ शरीर बल्की महिलाओं का मन मस्तिष्क एवम् भावनाएं भी प्रभावित होती है।
बदलाव आने की शुरुआत लगभग किशोरावस्था से शुरू होती है, इसमें मुड़ में बदलाव, नींद की समस्या, माहवारी में असंतुलन आदि कई तरह के पहलू होते है, जिनका सीधा सम्बंध हार्मोन्स से है। 30 से 40 साल की उम्र में इनका प्रभाव ज्यादा होता है।
महिलाओं में हॉर्मोन्स के असंतुलन के लक्षण और उपचार की जानकारी निचे दी गयी हैं :
विशेषज्ञ मानते है की इस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टेस्टेरॉन इन 3 हार्मोन्स पर शरीर की मुख्य क्रियाएँ निर्भर करती है जैसे की ख़ुशी, अच्छी नींद, शरीर का तापमान, भूख, प्रजननक्षमता और सेक्स। इन 3 हार्मोन्स का यदि असंतुलन हो जाए तो स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है। खासतौर से ये लक्षण प्री मेनोपॉज़ के दौरान देखे जाते है। हार्मोन्स या अंत:स्त्राव शरीर में तैयार होनेवाला एक जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो की रक्त के माध्यम से शरीर में एक स्थान से दूसरे भाग में लाया जाता है। शरीर की विभिन्न रासायनिक क्रियाओं, बुद्धि, विकास, प्रजनन इत्यादि का संचालन, नियमन तथा नियंत्रण हार्मोन्स द्वारा होता है। इनकी सूक्ष्म मात्रा भी प्रभावशाली होती है। हार्मोन्स की कमी/ अधिकता दोनों ही शरीर के लिए नुकसान करते है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हार्मोन्स के बदलाव ज्यादा देखने को मिलता है। महिलाओं में कुछ हार्मोन्स ऐसे होते है जिन्हें फीमेल हार्मोन्स कह सकते है जिससे ना सिर्फ शरीर बल्की महिलाओं का मन मस्तिष्क एवम् भावनाएं भी प्रभावित होती है।
बदलाव आने की शुरुआत लगभग किशोरावस्था से शुरू होती है, इसमें मुड़ में बदलाव, नींद की समस्या, माहवारी में असंतुलन आदि कई तरह के पहलू होते है, जिनका सीधा सम्बंध हार्मोन्स से है। 30 से 40 साल की उम्र में इनका प्रभाव ज्यादा होता है।
महिलाओं में हॉर्मोन्स के असंतुलन के लक्षण और उपचार की जानकारी निचे दी गयी हैं :
हार्मोन्स में उतार - चढ़ाव
सर्वे के अनुसार करीब 30% महिलाएं हार्मोन्स से प्रभावित होती है। युवा अवस्था में हार्मोन्स का स्तर काफ़ी ऊँचा होता है लेकिन 40 - 45 साल की उम्र में हार्मोन्स के स्तर में गिरावट आने लगती है, जिस कारण महिलाये कई तरह के शारीरिक और मानसिक समस्याओं से गुजरती है, जैसे अनिद्रा, अपच, जोड़ों में दर्द , त्वचा में बदलाव, व्यायाम या डाइटिंग के बावजूद बढ़ता वजन।हॉर्मोन में असंतुलन के लक्षण
- प्रोजेस्टेरोन को हैप्पी हार्मोन भी कहा जाता है। महिलाओं में प्रोजेस्टेरोन की कमी होने पर अनियमित माहवारी और ज्यादा रक्तस्त्राव की समस्या होती है। इसी कारण वे चिड़चडी, उत्तेजित और डिप्रेशन में ग्रस्त रहती है। अगर इसका शरीर में संतुलन सही रहता हैं, तो महिलाये खुश, रिलैक्स और पॉजिटिव सोच से भरी होती है।
- अगर आप पर्याप्त नींद नही ले पा रहे हो या नींद होने के बाद भी सन्तुष्टि नही मिल रही हो तो आपके हार्मोन्स असंतुलित हो सकते है।
- प्रोजेस्टेरोन की कमी से नींद न आने की समस्या, इस्ट्रोजन की कमी से रातमें पसीना आने की समस्या जिसकी वजह से नींद भी प्रभावित होती है।
- प्रोजेस्टेरोन बढ़ने की वजह से हर वक्त नींद आना और थकान लगती है।
- हार्मोन्स का असंतुलन आवश्यकता से अधिक खाने के लिए प्रेरित करता है जिससे वजन बढ़ने की समस्या होती है तो कभी इसके विपरीत वजन घटने भी लगता है।
- अगर माहवारी के पहले मुँहासे आते है और ठीक हो जाते है तो ये सामान्य बात है पर अगर मुहांसे ठीक होने में परेशानी हो रही है तो ये कई बार एण्ड्रोजन हार्मोन के असंतुलन से हो सकता है जिसकी वजह से तेलग्रन्थि की सक्रियता बढ़ जाती है। चेहरे पर अनचाहे बाल होना भी इसकी वजह से हो सकता है।
- थायरोक्सिन की कमी से ऊर्जा में कमी, वजन बढ़ना, आलस, ठंड सहन न होना, रूखी त्वचा , बालो का झड़ना आदि लक्षण देखे जाते है।
हॉर्मोन में असंतुलन का उपचार
मीनोपॉज के दौरान शरीर में प्राकृतिक रूप से हार्मोन्स बनने कम हो जाते है। इस पड़ाव में भी डॉ के पास जाना जरूरी होता है। उपरोक्त कोई भी लक्षणो से परेशानी होने पर या मूड स्विंग होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिले।- ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या प्रिमरोज़ ऑइल भी अच्छा उपाय है।
- विटामिन E, C, B 6 भी इसमें फायदा करते है।
- डॉ की सलाह से उचित मेडिसिन शुरू करे।
- मनोचिकित्सक की सलाह, कॉउंसलिंग और स्त्रीरोग विशेषज्ञ की देखरेख में HRT (हार्मोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी ) के साथ आईसोफ्लेवोंन्स ले। यह नेचुरल इस्ट्रोजन होता है। इसे खास पौधों से तैयार किया जाता है। यह शरीर में फीमेल हार्मोन्स की कमी को पूरा करने की कोशिश करता है। यह सोयाबीन, टोफू और पत्ताकोबी में पाया जाता है।
- इसके अलावा कैल्शियम भी ले, इससे मूड सही रहेगा।
- इस दौरान महिलाये नमक कम खाये और पानी ज्यादा पिए।
- आहार में सलाद, हरी सब्जी, फलों की मात्रा बढ़ाए। आहार ऐसा हो जो पोषक तत्वों से युक्त हो साथ ही जिसमे प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स एवम् फैट्स का प्रमाण संतुलित हो। कई महिलाये क्रैश डायटिंग के चक्कर में प्रोटीन्स ज्यादा और कार्बोहाइड्रेट्स कम लेती है जिसके चलते शरीर में कमजोरी आती है।
- भूख दबाने के लिए ये महिलाये चाय, कॉफी का सहारा लेती है जो सेहत के लिए नुकसानदायी है।
- जो भी आहार ले सोच समझकर ले।
- अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग, मेडिटेशन के लिए समय निकाले।
- कोशिश करे की शरीर में सभी हार्मोन्स का संतुलन हो ताकि माहवारी सामान्य हो सके।
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